सोमवार, 23 जुलाई 2012

बंधन,अपमान,तिरस्कार नहीं - सम्मान की हकदार हूँ मैं...........

रोज़मर्राह हम खबरों में महिलाओ के साथ होने वाली घटनाओ की वारदाते पढते रहते है। किसी को जला कर  मार  दिया,किसी के साथ मारपीट, बलात्कार,लूटपाट और छेअड़खानी जैसी खबरे  आज के समय में मामूली बात हो गयी और सब से अजीब बात तो यह है की इस प्रकार की घटनायो को जायदा तवाजो भी नहीं दिया जाता है| जिसके  कारण महिलायों के साथ होने वाले अपराधो  की संख्या में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी होती जा रही है|
आखिरकार क्यों! पुरुष वर्ग, महिला अधिकार जाताना अपना धर्म और शान समझाता है| जब इश्वर   ने महिला और पुरुष को एक दूसरे का पूरक बनाया है तो उसके इस अतुल्य उपहार को इंसान असमानता के तराजू में क्यों तोलता है | और इस माप-तोल का दोषी हम किसी एक इंसान को नहीं ठहरा  सकते है क्योकि यह माप-तोल तो तभी शुरू हो जाता है जब एक नारी एक छोटी से  बच्चे के रूप में किसी घर में जन्म लेती है | यदि आप सोच रहे है की ,आज कल ऐसा नहीं है या  केवल असभ्य और अशिक्षित लोग ही ऐसा करते है तो यह धारणा बिलकुल  गलत है, अशिक्षित व असभ्य लोगों के साथ- साथ सभ्य और शिक्षित लोग  भी इस समानता को बर्दाश नहीं कर पाते है| जब एक स्त्री को स्वं के घर से ही असमानता का माहोल मिलता है तो बाहरी जगत की  तो बात ही अलग  है|
एक स्त्री चाहे वो बेटी, बहु, पत्नी ,माँ कोई भी क्यों न हो हरदम  हरपल किसी न किसी रूप में पिता, भाई, पुत्र और पति के अधिकार में अपना जीवन व्यतीत करती है| लेकिन , उस पुरुष वर्ग का स्वागत है| जो नारी उत्थान  में अपना सहयोग देते है परन्तु बड़े दुःख के साथ कहना पड़ता है की ऐसा वर्ग का प्रतिशत बहुत कम होता है |कुछ लोग अकसर आप को कहते मिल जाते है कि एक नारी को आत्म निर्भर बनना चाहिए और यह वास्तव में बहुत अच्छी बात है| परन्तु उस वर्ग के समक्ष एक प्रशन है,कि क्या आप उसके आत्मनिर्भर बनने  की राह में एक रोड़ा बनकर सामने नहीं आयेगे ?क्या आप उसका आगे बढ़ने  में साथ देगे? नहीं! वो इसलिए क्योकि जब एक स्त्री अपने घर की चारदीवारी से निकलकर आत्मनिर्भर  बनने  बाहर जाती है तो ,घर से कार्यालय तक जाने में महिलाओ  को क्यों अनेक  परेशानियों का सामना करना पड़ता है| क्यों एक अनजान पुरुष जिसका उससे कोई लेनादेना नहीं है उस पर अपना अधिकार जमाना चाहता है|  जैसे वो स्वं  अपना जीवन स्वतंत्र रूप से जी रहा है स्त्री को क्यों नहीं जीने देता ? कार्यालयों में कर्मचारी साथी और अधिकारी अपना हक क्यों जमाते है |
अभी हाल ही  दिल्ली  मेट्रो में छेड़खानी का एक  मामला सामने आया जिसमें एक लड़की को यात्रा के दोरान  बदतमीज़ी का शिकार होना पड़ा | और वंहा खड़े सेकड़ो लोगों के लिए तमाशा बन कर रह गयी | अक्सर इस प्रकार की घटनाओं  से लडकियों को रूबरू होना पड़ता है पर इस मामले का खुलासा तब हुआ जब इस लड़की ने ब्लॉग पर अपनी साथ हुई बदसलूकी की जानकारी दी| घटना कुछ इस प्रकार थी की २३ जून की दोपहर एक लड़की नोएडा  सिटी सेंटर स्टेशन से मेट्रो में अपनी  यात्रा शुरू की,और  लगभग ख़ाली ट्रेन में दरवाज़े के पास वाली  सीट पर बैठ  गयी|  कुछ ही स्टेशन गुजरे थे कि अचानक उसे  महसूस हुआ की कोई उसके उपर लद रहा है उसके साथ छेड़खानी कर रहा है और लड़की के  विरोध करने पर उसको जवाब देता है की तुम यहाँ क्या कर रही हो लेडिज  कोच  में क्यों नहीं जाती| इस पूरी बहस में पास खड़ा एक लड़के ने जब कहा कि जब वो कह रही है तो हट क्यों नहीं जाते हो| तो उसने उस लड़के के साथ भी बतमीजी शुरू कर दी और हार  कर पक्ष लेने वाले लड़के ने कहा कि तुझे लड़की से बदतमीजी करनी है तो कर मुझसे बदतमीजी से बात मत कर | ऐसे ही बहस  बढ गयी और नोबत उन दोनों लडको के बीच मार -पीट तक बढ गयी और एक दूसरे के शरीर से खून भी बहने लग गया | लेकिन लोगों से भरी मेट्रो में किसी ने भी उन दोनों को रोकने की जरूरत महसूस नहीं की, हद तो तब हो गयी जब मेट्रो में खून दे़ख कर लोगों ने उल्टा उस लड़की को ही कोसना शुरू कर दिया कि सब उसकी वजह से हुआ है| अब हमरे सभ्य समाज में रह रहे लोगों की इंसानियत को देखिये  जिस लड़के ने बदतमीजी की उससे किसी ने नहीं रोका एक लड़की के साथ होते अन्याय को सब देखते रहे और जब पीडिता ने स्वं के लिए आवाज़ उठाई तब भी किसी ने उसका साथ नहीं दिया और एक जनाब अपना फ़र्ज़ पूरा करने उठे भी तो लड़की को छोडकर अपने लिए लड़ने लग गए और इस सारी घटना के अंत में आखिरकार कुसूरवार  लड़की ठहराई  गयी |उसके कुछ दिन बाद गुहावटी में भी एक महिला के साथ हुई बदतमीजी का मामला सामने आया। यह कोई नयी या चोकने वाली घटना नहीं थी इस प्रकार की न जाने कितनी ही घटनाओ  से एक स्त्री को रोज़  रूबरू होना पड़ता है| परन्तु दुखद बात यह है कि इस प्रकार की घटनाओ  के लिए उलटे महिलायों को ही उनके व्यव्हार  , पहनावे अदि के कारण  दोषी ठहराया  जाता है| दुर्व्यवहार  करने वाले पुरुष की नियत या गलत निगह को नहीं|
अब  सवाल यह उठता है ,कि  जो पुरुष एक पिता, भाई,पति और पुत्र के रूप में अपने घर की स्त्रियों को मान-सामान और सुरक्षा देता है |वही पुरुष घर से बहर कदम रखते ही उसी स्त्री के मान- सम्मान  को क्यों रोंदता है | कुछ प्रतिशत लोग जो इस प्रकार की घटनायो को अंजाम देते है उन्ही की वजह से पुरुष  वर्ग (एक पिता , भाई और पति ) को अपने घर की स्त्रियों को आज़ादी देते हुए डर लगता है लेकिन नारी पर अधिकार जमाना व उससे बंधन में रखना इस समस्या का हल नहीं है |यह समस्या बहुत गंभीर है जो बहुत विकराल रूप ले चुकी है एक स्त्री के साथ मारपीट करना , छेड़खानी करना , दहेज़ के लिए प्रताड़ित करना अदि बहुत सी समस्याए है | लेकिन, इंसान को यह समझना होगा ,बेशक नारी को पूजो मत उसे अपनी बराबरी का दर्ज़ा भी मत दो पर उसे वह मान सम्मान  दो जिसकी वो हक़दार है जो सम्मान  , सुरक्षा  आप अपने घर की स्त्रिओ के लिए चाहते है दुसरो से ,और  स्वं उन्हें देते है | वही घर के बहार जब अन्य  स्त्रिया आप के समक्ष हो तो उन्हें भी दे| जब आप को सभी प्रकार की स्वतंत्रता है तो पुरुष की पूरक, जिसे स्त्री कहा जाता है | उसको बंधन , अपमान , तिरस्कार क्यों ?