सोमवार, 26 दिसंबर 2011

meri yatra ke anubhav kiye hue kuch pal

भी कुछ समय पहले  मैं  अपने परिवार के साथ कृषण जन्म भूमि मथुरा गयी | सम्पूर्ण  यात्रा बहुत ही अच्छी रही| परन्तु जन्म  भूमि जाकर  मन को कुछ आहात जरुर हुआ ,कि यह क्या है? क्योकि अभी तक सिर्फ सुना था ,कि  औरंगजेब  ने अपने शासन  काल में तीन स्थानों के मंदिरों को ढहा कर मस्जिद का निर्माण किया ,तो कभी कुछ महसूस ही नहीं हुआ सिर्फ समाचारपत्र और टी.वी . पर  एक खबर लगती थी| पर जब वह मैंने भगवन कृषण का जन्म जिस जेल में हुआ था वो स्थान देखा  ,तो पता चला कि कंस की बाकि की ६ जेलों  पर ,बराबर में खड़ी  मस्जिद का निर्माण किया गया  है,और  मथुरा में यह इदगाह  है| यह भी बाबरी मस्जिद की तरह एक  विवादित स्थल है, और काशी  विश्वनाथ  में भी इस प्रकार का कुछ विषय  है |
इस बात को बताते हुए मन  में किसी के लिए कोई अच्छी यह बुरी भावना नहीं है |और में  सभी धर्मो का बहुत सम्मान  भी करती हूँ  | पर बस यही सोचती हूँ  कि एक इंसान की इस सोच की वजह से आज १६००  से २१वि सदी आ गयी है ,पर  लोगो के मन से भेद भाव और दूरिया आज भी  कम नहीं हुई है| अगर औरंगजेब को मस्जिद का  निर्माण ही  करना था |तो कोई भी  स्थान चुन सकता था |किसी एक ऐतिहासिक धार्मिक   इमारत  को ध्वस्त क्र के कोई और इमारत   बनाना कही की भी अकलमंदी नहीं थी| .अगर   उसे भी कुछ अच्छा करना ही था| तो देश   को मस्जिद के तोर   पर मुग़ल शासक   शहंजहाँ की तरह ताज महल  का निर्माण करवता  |
तो सभी उसे देखने  तो जाते  एक यादगार के तोर पर ,एक ऐतिहासिक इमारत के तोर पर ,इबादत के तोर पर जैसे ताज महल   को सभी लोग दूर- दूर से देखने   आते है  |खेर  सब की अपनी -अपनी सोच  होती है और अपने -अपने कर्म |पर मेरा मानना  है कि हमें चाहिए हम किसी भी धरम या  जाति से क्यों न जुड़े हो अपने कर्म ऐसे करने चाहिए कि अपने कर्मो से हम   किसी को कुशी  दे सके गम नहीं |वही इंसान इश्वेर की नज़रो में सब से बड़ा होता  है  और  उसके   चरणों में स्थान पाता है| 
अंत में यही कहना चहुगी  कि : हम सब एक है |एक ही रहेगे,
कुछ चंद   लोगो की वजह से अपनी बगिया को बर्बाद नहीं होने देगे| 

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

निर्माण के खेल का शिकार होती एक और सड़क


यह चित्र है एक सड़क का जो बिलकुल सही हालात में थी और आब इस कि हालात आप कि नज़रो के सामने है!

आप ने अपने आस पास कई बार देखा होगा कि जो सड़क बिलकुल सही थी वो सड़क तोड़ने के अचानक आर्डर आ जाते है और दुबारा से वहा पर निर्माण कार्य शुरू हो जाता है .और यह केवल एक सड़क का उदाहरण नहीं है बहुत से जगह हमको यह देखने को मिलता है जैसे सड़क किनारे पेड़-पोधे लगाना और उन की कोई देखभाल न करना और उनके ख़राब हो जाने पर फिर पेड़-पोधे लगाना.................................................. नए फुटपथो का निर्माण करवाना फिर कुछ समय बाद उनको तुडवाना और फिर उन का निर्माण करवान .............अब सवाल यह उठता है कि आखिर यह निर्माण का कोन सा ढंग है जहा देश के विकास के नाम पर सम्पति और आय का यह मेल किया जाता है कि पहेले सम्पति का निर्माण कराया जाये फिर उससे बरबाद किया जाये और फिर निर्माण .........जहा एक और देश मैं इतनी महंगाई बढ रही है वहा इस प्रकार से देश का पैसा क्यों बर्बाद किया जाता है...............और वास्तव मैं जिन जगह इस आय का सही उपयोग होना चहिये वहा तो कोई विकास कार्य नहीं किया जाता है..............

रविवार, 6 मार्च 2011

महंगाई के ढोल की पोल

देश में जब भी कुछ नया होता है तो राजनीतिक गलियारों से लेकर पान वाले ki दुकान तक देश का कोई भी कोना उससे अछूता नहीं रहता है और आज कल तो चारो ओर मंहगाई का शोर ही सुनाई पड़ता है| लेकिन फिर सोचा कि आखिर मंहगाई है क्या ? तो पाया कि यह एक ऐसी समस्या है जिसके अंतर्गत एक आम नागरिक की आम वस्तुए कुछ खास होती चली जाती हैं ओर कई बार तो वो वस्तुए अपनी खासियत की सीमा को इस हद तक पार कर जाती हैं कि खास नागरिको से भी दूर होने लगती हैं |तब लोगों की नींद से भरी आंखे खुलती हैं और उन्हें होश आता है कि देश में मंहगाई बढ रही हैं और इन खास चीजों में मुख्यत: खाधय प्रदार्थ ,दैनिक उपभोग की वस्तुए ,दवाईयां ,आवागमन साधन ,जल ,विधुत का बढता किराया आदि शामिल हैं| लेकिन अक्सर यह देखा जाता है की हम सभी इसका सारा दोष सरकार को देते हैं जो कही की भी इंसानियत नहीं है इसमें कही न कही हम सब भी जिम्मेदार होते हैं| आधे से ज्यादा समस्या तो देश में बढती जनसँख्या के कारण उत्पन्न होती है अब क्या उसके लिए भी सरकार जिम्मेंदार है नहीं| बढती जनसंख्या ,खाद्य प्रदार्थो के उत्पादनं में कमी,बढते ओद्योगीकरण के फलस्वरूप कृषि योग्य भूमि में होती कमी,किसानो का शहरो की और पलायन ,शहरीकरण की दोड़,लोगों का भोतिक साधनों की और बढता रुझान तथा उसकी तुलना में लगातार घटते साधन भी मंहगाई का कारण होते हैं|लगातार बढती महंगाई के लिए जितने आप और हम दोषी है उससे कही ज्यादा सरकार दोषी हैं| कॉमन वेल्थ गेम्स २०१० की आड़ में सरकार राज़ में बहुत महंगाई बढ गयी यदि आपके और हमारे घरो में कोई मेहमान आता है तो घर की सजावट तो सभी करते है पर मेहमानों की खातिर आखिर कोन अपना घर तोड़ कर नए सिरे से बनता है |लेकिन देश में यही हो रहा है, हो भी क्यों न इसकी आड़ में मुनाफाखोरी भी तो हो रही हैं| हमारी सरकार नये -नये मुद्दों की आड़ लेकर महंगाई को बढवा दिया जाता है कभी बाढ़ के नाम पर तो कभी आर्थिक विकास के नाम | यहाँ तक की अपने देश में क्या हो रहा है उसकी खबर भी राजनेताओ को विदेश दोरों से पता चलता है| लेकिन कारणों की कोई सीमा नहीं होती हैं| यदि इस बढती महंगाई को रोकना है तो सरकार को चोरबाजारी ,मुनाफाखोरी पर कड़ा नियंत्रण करना ,उत्पादन बढ़ाना ,निर्यात वृदि करना आदि बहुत से उपाय करने चाहिए और हम सबको भी मिलकर अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को भूल कर राष्ट्र स्वार्थ को महत्व देना चाहिए|और अंत में कुछ पंक्ति कहना चाहूगी-
राजनीती के गलियारों में शोर बहुत है ,पर जनता मोंन है ,
कि सरकार पलट भी जायगी तो क्या रंग लाएगी |
अभी यह पार्टी निचोड़ रही थी,
अब दूसरी पार्टी दबा दबा कर खाएगी |
और जनता बेचारी वही रह जायगी
महंगाई का बिगुल बजाएगी ||

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

jewan ka pahela dwar 'shiksha ka adhikaar'

हर मॉं - बाप का सपना होता है कि वह अपने बच्‍चे को एक सुरक्षित, शिक्षित व सुनहरा भविष्‍य दें और इस सपने की शुरूआत भी बच्‍चे के जन्‍म के साथ ही हो जाती है। हर मॉं-बाप अपने बच्‍चे को अच्‍छी से अच्‍छी शिक्षा देना चाहते हैं। लेकिन, आज के दौर में माँ-बाप की असली परीक्षा बच्‍चे के जीवन के प्रथम द्वार शिक्षा, के लिए प्रारम्भिक चरण यानि दाखिले के समय से ही शुरू हो जाती है। माता-पिता विद्यालयों में अपने बच्‍चों के नर्सरी, के.जी. के द‍ाखिले के लिए जाते हैं। ताकि उनका बच्‍चे पढ़ लिखकर एक बेहतर भविष्‍य बना सकें। उसकी पढ़ाई की नीव मज़बूत बन सके। सबसे पहले ही उनके दाखिले को लेकर इतनी समस्‍याएं माता पिता के सामने आ खड़ी होती हैं कि शिक्षा के मंदिर भी व्‍यवसाय का केन्‍द्र नज़र आने लगते हैं। नर्सरी में बच्‍चे तब एडमिशन प्राप्‍त कर शिक्षा ग्रहण कर पाएंगे जब पहले माता-पिता उनके दाखिले के लिए पद्धति का एन्‍ट्रेंस टेस्‍ट पास कर पाएंगे अर्थात् अब नर्सरी के प्रवेश के लिए पहले माता पिता को पढ़ना होगा।
नए साल की शुरूआत के साथ ही शिक्षा निदेशालय के आदेशानुसार स्‍कूलों में रजिस्‍ट्रेशन के लिए 1 से 15 जनवरी तक का समय दिया गया और अधिकतर स्‍कूल इसी समय सीमा के मुताबिक ही एडमिशन प्रोसेस कंडक्‍ट कर रहे हैं, जिसमें ऑन लाइन रजिस्‍ट्रेशन भी उपलब्‍ध है। साल के पहले ही दिन से माता पिता अपने बच्‍चे के नर्सरी में दाखिले के लिए इस दौर में दौड़ते नज़र आ रहे हैं। इस दाखिले की दौड़ में माता पिता की दौंड लगवाने वाले कुछ नामी ग्रामी स्‍कूलों की लिस्‍ट में सबसे ऊपर एयर फोर्स बाल भारती स्‍कूल, माउंट आबू पब्लिक स्‍कूल, स्प्रिंगडल्‍स स्‍कूल, दिल्‍ली पब्लिक स्‍कूल, ज्ञान भारती स्‍कूल आदि शामिल हैं। इन सभी स्‍कूलों में रजिस्‍ट्रेशन प्रोसेस के फार्म को भरना बहुत जटिल है। जिन्‍हें समढने में ही माता पिता को काफी मुश्‍ि‍कलों का सामना करना पड़ रहा है। स्‍कूलों ने इस प्रोसेस में कुछ पाव्‍इंट्स भी शामिल किए है जिनमें कुछ बिन्‍दू हैं, बच्‍चे की उम्र, आस पड़ोस, फसर्ट चाइल्‍ड, गर्ल चाइल्‍ड, चाइल्‍ड विद स्‍पेशल नीड़, सिंग्‍ल पैरेंट्स, फिजिकली चैलेंजेंड चाइल्‍ड आदि स्‍पेशल है। इन्‍हें अच्‍छे व अधिक अंक दिए जाते हैं। इन फार्मों के अंदर इतनी अधिक चीजें पूछी गई हैं कि माता पिता को फार्म भरने में ही काफी मशक्‍त करनी पड़ रहीं हैं। पहले फार्म पाने के लिए 2 से 3 घंटे लाइनों में लगना, उसके बाद उसे भरने की प्रक्रिया पूरी कर उसे जमा कराना। इस प्रक्रिया को करने में प्रत्‍येक माता पिता को 8 से 10 बार करनी पड़ रही है क्‍योंकि हर माता पिता अपने बच्‍चे के लिए कम से कम 8 से 10 स्‍कूलों में रजिस्‍ट्रेशन करावा रहे हैं। जहां सरकार ने माता पिता की सुविधा के लिए फार्म की कीमत केवल 25 रुपए तय की हुई हैं वहीं स्‍कूल इस फार्म के साथ प्रोस्‍पेक्‍टस खरीदने के लिए भी माता पिता को बाध्‍य कर रहे हैं, जिसकी कीमत 100 से 500 रुपए के बीच है। उनका कहना है कि फार्म तभी मिलेंगे जब प्रोस्‍पेक्‍ट्स खरीदेगें क्‍योंकि फार्म भरने की पूरी प्रक्रिया इस फार्म के अंदर ही है। प्रोस्‍पेक्‍ट्स नहीं तो द‍ाखिला नहीं और दाखिला तभी होगा जब फार्म ठीक ठीक वैसा ही भरा होगा, जैसा कि प्रोस्‍पेक्‍ट्स में लिखा है। इस लिए सबसे पहले फार्म भरना ही माता पिता के लिए एक सिरदर्द बना हुआ है।
अभी तक हमने एक बच्‍चे के दाखिले को लेकर स्‍कूलों की मनमानी और माता-पिता की समस्‍या के बारे में बात की । यदि गौर किया जाए तो इन सब के लिए जि़म्‍मेदार कौन है, सरकार इन स्‍कूलों की मनमानी के लिए कोई कदम क्‍यों नहीं उठा पहीं हैं। माता पिता सुबह 5 बजे से लाइनों में लगे क्‍यों इतनी मारामारी सह रहे हैं। अब विचार करने योग्‍य बात यह है कि इन स्‍कूलों की इतनी मनमानी दिन पर दिन क्‍यों बढ़ती जा रही है। रूकूलों की दिन पर दिन बढ़ती मनमानी के पीछे सबसे बड़ा कारण है इन स्‍कूलों के प्रति माता-पिता का बढ़ता क्रेज़। जिन लोंगों ने इन विद्यातयों को इस स्‍तर तक पहुँचाया है उन्‍हीं विद्यालयों की मनमानी आज न चाहते हुए भी हर माता पिता को अपने बच्‍चों के दाखिले के लिए सहनी पड़ रही है और सरकार इस मुद्दे पर चुप्‍पी सादे नज़र आ रही है।
इन विद्यालयों की बढ़ती मनमानी और इसके बाबजूद भी इन्हीं स्‍कूलों में अपने बच्‍चों के दाखिले के लिए माता-पिता का बढ़ता क्रेज क्‍या सरकारी स्‍कूलों और कम फीस वाले स्‍कूलों की शिक्षा प्रणाली/ स्‍तर पर सवालियां निशान खड़ा नहीं करते। क्‍या जो सरकार इन स्‍कूलों को मान्‍यता प्रदान करती है वहीं सरकार अपने स्‍कूलों के शिक्षा तंत्र को इतना मज़बूत नहीं समढती कि लोगों को अपने बच्‍चचे को सरकारी स्‍कूलों में पढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकें ? जबकि सरकारी स्‍कूलों में एक एक शिक्षक का चयन इतनी योग्‍यताओं, अनुभवों व जटिल चयन प्रक्रिया से गुजरने के बाद किया जाता है। नर्सरी कक्षा के लिए भी शिक्षक की योग्‍यता ‍कम से कम बी.एड. पास है क्‍योंकि इससे कम योग्‍यता वाले शिक्षक तो स्‍कूलों में पढ़ा भी नहीं पाते हैं। फिर क्‍यों हर माता-पिता अपने बच्‍चों के दाखिले के समय पब्लिक स्‍कूलों का मुँह देखते हैं, उनकी मनमानी सहते हैं और समझते हैं कि पब्लिक स्‍कूलों में शिक्षा बेहतर होती है इसलिए उनका रिजल्‍ट भी बेहतर होता है। यदि देखा जाए तो सरकारी स्‍कूलों का रिजल्‍ट पब्लिक स्‍कूलों से कम नहीं होता है। आज जो भी माता‍-पिता सार्मथवान है वह अपने बच्‍चों को पब्लिक स्‍कूलों में ही पढ़ाना चाहते हैं यह सब केवल ऊँची ऊँची बिल्डिंगों का ही प्रभाव है, या शिक्षा में भी अंतर होता है या पिफर यह सब माता-पिता के स्‍टेटस सिम्‍बल को भभ्‍ प्रदर्शित करता है अ‍ाखिर यह सब क्‍या है। इन सबके बीच सदैब मध्‍यम वर्ग के आदमी को क्‍यों पिसना पड़ता है। वह इन नामी स्‍कूलों में अपने बच्‍चे चाह कर भी नहीं पढ़ा सकता क्‍योंकि उसकी महीने की आमदनी से भी अधिक उसके बच्‍चे के स्‍कूल की महीने की फीस ही होती है। यदि माता पिता अपना बच्‍चा उन स्‍कूलों में पढ़ता है जो स्‍कूल नामी ग्रामी स्‍कूल से कम स्‍तर पर होते है और उनकी फीस भी सामान्‍य लगती है तो भी माता पिता को इन स्‍कूलों की फीस की मार सहनी पड़ती है क्‍योंकि यह स्‍कूल भी उन बड़े बड़े स्‍कूलों की तरह अपनी फीस अधिक करके मनमानी करते हैं। इन सब समस्‍यों को देखते हुए क्‍यों मुठ्ठी भर लोगा ही अपने बच्‍चों को सरकारी स्‍कूलों में पढ़ाना चाहते हैं।
अखिरकार क्‍या शिक्षा अब केवल शिक्षा न रहकर व्‍यवसाय और दिखावें की दुनिया तक सीमित रह जाएगी। आगे शिक्षा का भविष्‍य क्‍या होगा यह चिन्‍तनीय विषय है।
- मनु शर्मा