सोमवार, 2 नवंबर 2009

इतिहास के पन्नो से मेरा अस्तित्व

तेरी हर राह पर दुश्मन है तो क्या ?
तुझे हर जंग जीतनी है,
तेरी आँखों में आज नमी है तो क्या?
तुझे कल जमी जीतनी है,
जिस प्रकार से नारी आज विकास कर रही है तो एक दिन वो जमी जरूर जीतेगी ,परन्तु नारी की आँखों की ये नमी आज की नहीं बल्कि सदियों पुरानी दांस्ता का हिस्सा है जो कभी थमी तो नहीं है ,हा सूखने का प्रयास जरूर किया है स्रष्टी के रचियता ब्रह्म नारी को वर्चस्व प्रदान करने हेतु पुरुष और महिलायों में भेद रखा लेकिन उसे क्या पता था की उसके वर्चस्व प्रदापी यह गुण नारी को सबला से अबला बना देगा अतीत के पन्नो का यदि देखे तो हम पायगे की अति प्राचीन सभ्यता युग से नारी सबला हुई ऐसा इतिहासकार बताते है की ये समय मात् सचात्मक था इस समय नारी को धार्मिक अनुष्टान आदि का सामान अधिकार था बहुसंख्या में मिली नारी मूर्तियों से इस के प्रमाण भी मिलते है स्त्री प्रधानता का यह दोर वैदिक काल तक इसी सहजता के साथ चलता गया यहाँ से हमें नारी के अबला सवरूप के दर्शन हुए वैसे तो स्त्री को गृहलक्ष्मी और देवी की संज्ञा प्राप्त थी परन्तु देवी लक्ष्मी का स्थान भी सदेव विष्णु के चरणों के करीब ही रहा है यही कारन है की देवी के उस काल में भी मात्र देवी की भाति एक कमरे में कैद होकर रह गयी मध्य काल युग नारी शोषण का अगला चरण था अब वह भोग की वस्तु बन कर रह गयी थी मुग़ल काल में पर्दा प्रथा का आना , धीरे -धीरे अन्य कुरीतिया स्त्री के साथ जुड़ती चली गयी जैसे बाल विवाह, विधवा नियम ,सती प्रथा आदि आ गयी अब नारी पति की सह्चारी नहीं बल्कि उसकी अनुचरी होने लगी लेकिन फिर भी नारी को त्रिया चरित्रं की संज्ञा दी गयी और तुलसीदास ने भी नारी के आठ अवगुण बताये है
नारी स्वाभाव सत्य कवी कहहि,
अवगुण आठ सदा उर रहहि
सहज, अजित्य ,चपलता, माया,
भय ,अविवेक ,अशोच ,अदाया
नारी स्वाभाव के इसी गुण का शायद परिणाम था की दुनिया के सबसे पुराने व्यवसाय के रूप में वेश्यालयो का वास्तविक स्वरुप सामने आया इन वेशायालयो का स्वरुप तो जरूर बदला पर यह संस्था कभी बंद नहीं हुई और फिर भी विडम्बना यह की इस का भी सारा दोष नारी को ही दिया आखिर क्यों?परन्तु अब नहीं अब नारी अस्तित्व में आने लगी थी वो कहते है न आखिर अँधेरा कब तक रहेगा ,कभी तो सूर्य का चमकीला प्रकाश उजाला देगा और यही हुआ जो नारी गृहकार्यो में दक्षता के साथ -साथ अब संगीत कला ,नृत्य कला,चित्रकारी ,कसीदाकारी में भी दक्षता प्राप्त करने लगी और अपने घरो में सहयोग देने लगी कुछ असर किराश्चन मिशनरीज के आगमन का भी जरूर हुआ जो भारतीये समाज में स्त्री दशा के लिए एक नयी सुबह के समान था अब लड़कियों की शिक्षा पर भी बल दिया जाने लगा ।और वे अध्यापिका के पद पर भी नियुक्त किया जाने लगा इस समय एक मिथ तो जरूर टुटा की भारतीये समाज एक पुरुष प्रधान समाज हैधीरे -धीरे विभिन् कानून बने ,जैसे सिविल मेंरिज एक्ट ,विधवा विवाह अधिनियम आदि ]जो महिलायों के हक में थे अब स्त्री के पैरो की बेडिया खुलने लगी थी कहेते है यह संसार परिवर्तनशील है यहाँ हर पल हालत बदलते रहते है स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व तक नारीजाती को शोषण का शिकार बनाया जाता रहा ,पर आधुनिक युग नवजागरण का युग था विश्व भर में नारी स्वातंत्र्य का युग (woman's lib movement)चल पड़ा था इसमें का प्रभाव भारतीये नारियो पर भी पड़ा गत वर्षो में नारी जगत में काफी प्रगति द्रष्टिगोचर हुई इस का अन्ये कारण नारी शिक्षा में विकास भी था और धीरे -धीरे प्रयासों के बाद आज हालत यह है की कई राज्यों सहित देश के प्रमुख पदों तक महिलाये अपने का निर्वाहन कर रही है आज स्त्री अपने को समस्त कार्यो के लिए सक्षम समझती है और वास्तव में वो हर कार्ये सफलता पूर्वक सम्पूर्ण भी कर रही है पर क्या जो प्रत्यक्ष रूप से नज़र आता है वो सदा सच होता है क्या स्त्री की जिस झलक हम दे़ख रहे है वो सही है?क्या आज भी नारी को उस के प्रदत अधिकार मिल गए है ,या वो उन का प्रदत अधिकारों का उपयोग कर पा रही है शायद नहीं? क्यकी कुछ प्रतिशत महिलायों को छोड़ कर आज भी ऐसी स्त्रिया है जो आज भी वही जिंदगी जी रही है जिन बेडियों के हम टूटने की बात कर रहे है हम माने या न माने पर यह सच है की आज की नारी भी पूर्णरूप से सशक्त होते हुए भी खुद को कमजोर मानने पर विवश है ,भले घरो से बहार निकल कर वे आज अपने पुरुष साथियों के साथ काम कर रही हो फिर भी कही न कही उन्हें बहुत सी बातें सुननी पड़ती है ,जैसे यदि पुरुष कितनी ही महिला मित्र बना ले पर स्त्री का पुरुष मित्रो का होना आज भी चरत्रिक दोष है,ऐसे ही यदि कोई पुरुष गली में हँसता हु तेज़ आवाज़ में बोलता हुए निकले तो कोई दोष नहीं पर यही काम कोई स्त्री करे तो उसे 'बेशर्म कही की' जैसे नामो से जरूर नवाजा जाता है ऐसा नहीं है की हमारे समाज में नारी का अपमान ही किया जाता है उसे सम्मान भी दिया जाता है एक माँ ,बेटी ,बहन बीबी के रूप में और हमेशा यह भी कहा जाता है की एक सफल पुरुष के पीछे एक नारी का हाथ होता है ,लेकिन इस सच्चाई के पीछे भी एक बड़ी कड़वी सच्चाई है की इस सफलता के बाद भी सदेव स्त्री पीछे ही रहती है आगे कदापि नहीं आती ऐसा क्यों है की इतिहास से लेकर आज तक सम्पूर्ण रूप से सशक्त होते हुए भी नारी की आखो की नमी सूख नहीं रही है और वो यह कहती है की -इतने हिस्सों में बंट गयी हूँ मैं,फिर भी अपने को ढूँढती हूँ क्योकि मैं एक नारी हूँ ..........................

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

पहला एहसास

15 वर्ष की उम्र में ,
देखा था तुझे जब पहली बार,
धड़का का था यह दिल होकर बेकरार,
पर मुझे तो था उस दिन का इंतज़ार ,
जब होगे मेरे सपने साकार ,
तुझे पाने के लिए बरसो इंतज़ार ,
तेरे काबिल बनने को ,
ख़ुद को किया बरसो तैयार ,
जीवन के हर पड़ाव को ,
किया हँस कर पार ,
रास्ते में हुई चाहे,
मुश्किलों की कितनी ही बरसात

अब तेरे आने से ही तो ,
जीवन मेरा सम्पूर्ण हो पाया है,
जीने की बस तू ही प्रेरणा ,
तू ही मेरा हमसाया है,
तू ही है वो तू ही है,
जिसने जीवन में मुझे ,
सही मार्ग दिखाया है,
मुझे मेरे जीवन में प्रगति पथ पर बढाया है,
तेरे संग ही जीवन मेरा सम्पूर्ण हो पाया है

शनिवार, 30 मई 2009

मुझ में भी है जीवन



बीज से पैदा हुआ हू


जड़ो से हु जुडा


जुड़कर जड़ो से एक तने ने


मुझको किया खड़ा ,


तने की कुछ शाखाओ से

मुझको यह सुंदर रूप मिला

उन पर लिपटे सुंदर

पत्तो से हु मैं जड़ा ,


धुप मैं छाव मैं देता तुमको

भूख मैं देता फल

मुझको प्रेम करो तुम सब

मैं तुम को देता जीवन


तुम से मैं हु मुझ से तुम हो

यह है सत्य वचन

मुझे अब न काटना तुम

आखिर मुझ मैं भी है जीवन

बुधवार, 15 अप्रैल 2009

शिक्षा के मन्दिर में यह कैसा दृश्य

अप्रैल का महिना है और विद्यालयो में प्रवेश प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और इन दिनों जब सुबह सुबह समाचार पत्र उठा कर देखो तो उस में अक्सर यही खबर देखने को मिलती है की विद्यालय वाले पूर्ण रूप से अपनी मनमानी पर उत्तरे हुए है और माँ बापों को बहुत सी दिकतो का सामना करना पड़ रहा है और शिक्षा निदेशालेये में भी परेंट्स की शिकायतों का अम्बार लगा हुआ है और यहाँ तक की निदेशालेये ने कई विद्यालयो के प्रति कड़े कदम भी उठए है यह सब पड़ कर आप को लग रहा होगा की यह तो आम बात है और विद्यालय वाले तो होते ही ऐसे है पर एक बात हमेशा ध्यान में रखनी चाइए की ताली कभी भी एक हाथ से नही बजती

आज जब सुबह सुबह में एक स्कूल में गई तो पाया की वहा के प्रिंसिपल और किसी परेंट्स के बीच कुछ कहा सुनी हो रही थी और धीरे धीरे बात यहाँ तक बढ गई की परेंट्स प्रिंसिपल के साथ मार पिटाई करने पर उत्तारु हो गयाऔर जब में ने सारा मामला जन तो पाया की पहेले उस वैयक्ति का बच्चा उस स्कूल में पड़ता था और अब उन के स्कूल से टी.सी. भी प्राप्त कर चुका था पर कही और प्रवेश न मिल पाने के कारन वह वैयक्ति प्रिंसिपल से इस बात पर लड़ रहा था की मेरे बच्चे का नए स्कूल में प्रवेश तुम करा कर दो ,व्हो भी वहा जहा में कहू

आज के समय में सभी माँ बाप अपने बच्चो को अच्छी से अच्छी शिक्षा देना चाहते हैपर शिक्षा के जिस मन्दिर में आप स्वयम इस प्रकार की गति विधिया करेगे जब आप ही एक शिक्षक का निरादर करगे तो आप सोचे की आप अपने आने वाले कल को क्या दे रहे है आप अपने जिस बच्चे को अच्छी शिक्षा देना चाहते है व्हो आप से किस प्रकार की शिक्षा प्राप्त कर रहा है आप अच्छे स्कूल में पड़ा कर अपने बच्चे को अच्छा इन्सान नही बना सकते अच्छा इंसान व्हो तभी बनेगा जब आप उससे अपने घर से ही अच्छी ज्ञान की बाते सिखा रहे हो,और बात रही शिक्षा निदेश्ल्याओ में शियाकतो के दर्ज होने की तो में आशा करती हु की यह समिति कोई भी फ़ैसला एक तरफा नही करे ,क्योकि गलती हमेशा स्कूल वालो की ही नही होती कभी- कभी परेंट्स का भी उतना ही सहयोग होता है

बुधवार, 8 अप्रैल 2009

मैं और मेरे पिताजी

  • जब मैं ५ साल का था (इससे पहेले की बातें मुझे याद नही ),तब सोचता था -मेरे पिताजी दुनिया के सबसे स्मार्ट और सबसे ताकतवर इंसान है
  • १० साल की उम्र मैं मेंने महसूस किया की मेरे पिताजी हर चीज का ज्ञान रखने वाले और बेहद समझदार भी है
  • जब मैं १५ का हुआ तो महसूस करने लगा की मेरे दोस्तों के पापा तो मेरे पिताजी से भी ज्यादा समझदार है
  • २० साल की उम्र मैं मैंने पाया की मेरे पिताजी को दुनिया के साथ चलने के लिए कुछ और ज्ञान की जरुरत है
  • २५ साल की उम्र मैं मेरी यह सोच बनी की मेरे पिताजी किसी और दुनिया के है और वह नए ज़माने के साथ नही चल सकते
  • ३० साल का हुआ तो महसूस किया की मुझे किसी भी काम के बारे मैं उनसे सलाह नही लेनी चाहिए क्योकि उन्हें हर काम मैं नुक्स निकालने की आदत सी पड़ गई है
  • ३५ साल की उम्र मैं मैंने महसूस किया की आब पिताजी को मेरे तरीके से चलने की समझ आ चुकी है ,इस लिए छोटी- मोटी बातो पर उन की सलाह ली जा सकती है
  • जब मैं ४० साल का हुआ तो महसूस किया की कुछ जरुरी mamlo मैं पिताजी की salaha लेना जरुरी है
  • ५० साल की उम्र मैं मुझे लगा की पिताजी की सलाह के बिना कुछ नही करना चाहिए ,और १५ साल की उम्र के बाद की मेरी धर्नाये ग़लत थीअब मेरे बच्चे बड़े हो चुके थे परन्तु अफ़सोस ,इससे पहेले की mein apne is faisle par amal kar pata, mere पिताजी इस संसार को अलविदा कहे गए और मैं उनकी हर सलाह व तजुर्बे से वंचित रहे गया
  • बेटा समझता है ,बाप बनने के बाद !
  • बेटी समझती है, माँ बनने के बाद !
  • बहु समझती है ,सास बनने के बाद !

यह सब मैंने एक समाचार पत्र मैं पढ़ा और चाह कि आप के साथ शेयर करू और unka bhi shukriya करू जिस ने इतना अच्छा लेख लिखा

मंगलवार, 10 मार्च 2009

उडा ले गए सिर से छत भी


बात आज से करीबन दो या तीन महीने पहेले की है जब हम सुबह सुबह घर से घूमने जाने के लिए निकले तो पाया की हमारे इलाके यमुनापार (शास्त्री पार्क ) में भी लोगो के लिए सड़क के दोनों और एक - एक बस स्टैंड शेल्टर का निर्माण हो चुका है यह देखकर मन बहुत प्रसन हुआ , यानि की लोगो को बारिश ,तपती धुप से बचने और अपने बस ,रिकशा आदि के इंतजार को करने में कुछ रहत तो अवश्य मिलेगी लेकिन यह क्या अभी तो इस के बारे में इस के फायेदे के बारे में चर्चा ही शुरू हुई थी की एक महीने बाद फिर घर से निकले तो पाया की शेल्टर का एक और की सड़क का आधा हिस्सा तो गायब ही है चलो खेर थोड़े दिन और बीते तो फिर पाया की जो आधा गायब था वहा अब बचा हुआ आधा भी नही रहा यानि जैसा शुरू से उस जगह को देखते आए थे व्हो फिर वैसी ही हो गईअच्छा जी अभी तो बात एक ही और के शेल्टर की हुई है अभी तो दूसरी और का शेल्टर तो बचा हुआ ही है न जाने किस की कृपासे

परन्तु अधिक प्रसंता की जरुरत नही है अब बारी है दुसरे की जब थोड़े दिन पहेले देखातो एक पाइप गायब फिर दूसरा फिर धीरे धीरे करके सब गायब हो गया आज जब हम सड़क से गुजरे तो पाया की यह भी पुरा गायब हो चुका है आखिर कार यह मझरा क्या है भाई हमें तो कुह समझ नही पड़ रहा था इलेक्शन थे तो सब बने और होते ही सब गायब पर भइया आप ग़लत न समझे यह पार्षद या विधायक का काम नही है आखिर व्हो ऐसा क्यो करेगे उन्होंने ही तो निर्माण कराया था

लेकिन जब हम ने लोगो से बात की इस बारे में तो पाया की यह काम इस्मेकियो का है या कबाडियों का बेअशक यह शेल्टर पुरे गायब हो चुके हो पर किसी को कोई फरक नही पड़ता आखिर पड़े भी क्यो केवल उन लोगो को छोड़ कर जिन्हें इसे इस्तेमाल करना था यह तो केवल एक शेल्टर की ही बात है न जाने ऐसे कितने ही शेल्टर और bahut sa सरकारी saamaan churaayaa जा चुका है या churaaya जाना baakee hai ... ये haal तो tab है जब चार kadmoo ki doori par police chowki है ! जब तक मैं ये lekh लिख रही hu tab तक bhut sa smaan kabadiyoo kee dukan तक pahuch चुका hoga ! और जिन के द्वारा इन का निर्माण कराया गया उनहे तो इसका पता भी नही होगा !


आखिरकार अब swaal ये khadaa होता ही की इन सब की suraksha की jimmewari कौन लेगा ! क्या सरकार का काम केवल इन्हे laagwaana है ???? या इनकी suraksha को sunishchit करना भी?


रविवार, 8 मार्च 2009

होली मुबारक


आप सभी को होली की हार्दिक शुब्कामनाए

रंगों की दुनिया


त्यौहार कोई भी क्यो न हो सभी के चहेरे पर एक खुशी ला देता है


और खास कर की रंगों का त्यौहार होली तो आने से पहेले ही आदमी को मस्ती के माहोल में ढलने को प्रेरित करता है फिर चाहे कोई छोटा हो या बड़ा रंग सभी को अपनी और आकर्षित करते है यही वो पल होते है जब इंसान अपने सभी गिले शिकवे मिटा कर सभी को एक ही रंग में रंग लेता है और रंगोंकी मस्ती में सराबोर हो कर सभी गमो को भुला कर , अपनी भागती दोड़ती जिन्दगी में से कुछ पल पुरे आनंद के साथ जीता है


मैंआप सभी को होली की बहुत बहुत शुब्कामनाए देती हु और आशा करती हु की आप सभी की होली मंगलमय हो

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

याद रहेगा वो सफ़र भी

दिसम्बर की छुट्टियों में और मम्मी अपने मामा के रहने गए थे और रविवार को हमें को वापस आना थाजैसे ही हम स्टेशन पर पहुचे और वहा का माहोल दाखा तो पाया की रेवाडी से देल्ही १०:३० वाली गाड़ी ४-५ घंटे देर से आयेगी (कोहरे के कारण)खेर थोडी देर अपने मोसी का घर पास में होने के कारण हम वहा रुक गए और फिर २ बजे वाली गाड़ी से अपने घर की और निकल पड़े इस से पहेले भी बहुत सी गाडिया जा चुकी थी जिस कारण हमरी गाड़ी लगभग खाली थी खास का की हमारी बोगी धीरे -धीरे सभी यात्री देल्ही कैंट तक उतर चुके थे अब हमारे डिबबे में मम्मी और में और १ आदमी था और क्योकि यह गाड़ी सराए के बाद पुल बंगश के बीच उजाड़ झुगियो के पास जरुर रूकती है इसलिए उस दिन भी कम से कम २० मिनट तक यह वहा रुकी और यह २० मिनट मेरे और मम्मी के लिए बहुत भरी हो गए थे क्योकि इसी बीच डिब्बे में एक शारबी चढ़ आया और गन्दी गन्दी गलिया देने लगा उस से डर कर हम थोड़े पीछे की तरफ़ चले गए और पाया की वहा भी कोई नही था अब हम और डर चुके थे क्योकि हमने गहने भी पहने थे और काफी समान भी था हमारे पास और उस एक आदमी की वजह से हम गेट भी बंद नही कर पा रहे थे और थोडी देर में व्हो एक आदमी जो पहेले से हमरे साथ था वो भी शराबी की वजह से हमरे ही डिब्बे में आ गया था तब मम्मी ने उनसे बात की तो पाया उन्होंने कहा की बहनजी आप चिंता न करो और दरो मत यह कुछ नही करेगा हम भी तो है यहाँ तब मम्मी को कुछ होसला आया और फिर थोडी ही देर में ट्रेन भी चल दी तब उस आदमी ने पहले हमें उतारा और फिर ख़ुद उत्तरा इस जल्दी बाजी में हम उनका शुक्रिया करना भी भूल गए और अपने घर की और चल दिए
आज की दुनिया में भी अच्छे लोगो की कमी नही है इसलिए हमेशा उपर वाले पर भरोसा रखना चाहिए और इस पत्र के जरिये हम उस अनजान व्यक्ति का भी धन्यवाद कहते है

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

सरनेम की माया

पुराने काल में जब कन्याओ का विवाह होता था ,तो उनका केवल एक ही धर्म होता, अपने पति के धर्म को मानना उसके मान-सम्मान का धयान रखना व पति के प्रति समर्पण की भावना रखना परन्तु अब विवाह के मायने ही बदल गए है यहाँ कोई समर्पण नही रहा सब स्वं को उच्च समझते है और कोई अपनी पहचान नही खोना चाहता एक और यदि देखा जाए तो ,जब माँ-बाप अपने बच्चो की शादी करते है तो वह अपने ही धर्म में करते है जिसके चलते लड़कियों को अपने पति के धर्म को अपनाने में कोई भी आपति होती और कई बार तो दोनों परिवारों का सरनेंम भी एक ही होता है जिस के कारण कोई भी समस्या उत्पन्न नही होती है परन्तु जब लड़के-लड़किया स्वं शादी करते है और खास कर की अन्तेजतिये विवाह करते है उस समय लड़कियों समक्ष अपना सरनेम बदलने की समस्या उत्पन्न होती है वह सोचती है की उनकी अपनी पहचान कही खो न जाए ऐसे में वे यह तो अपना सरनेम लगाती ही नही यह फिर अपना और अपने पति दोनों का लगाती है एक और देखा जाए तो इसका आजकल चलन हो चला है और यह लाभदायक भी है जिनका पारिवारिक जीवन सफल नही हो पता वह अलग होने के बाद फिर अपनी उसी पहचान को प्राप्त कर अपना जीवन जीती है और किसी कागजो का फेर-बदल भी नही करना पड़ता

शनिवार, 17 जनवरी 2009

बाल विवाह


मासूम ,भोला ,स्वतंत्र और बेफिक्र बचपन हर किसी की किस्मत में नही होता जिसका एक बड़ा कारण बाल विवाह भी है इस पारंपरिक प्रथा को सम्पूर्ण रूप से समाप्त तो नही किया जा सकता परन्तु कुछ सफल प्रयासों द्वारा इसमें कमी लायी जा सकती है केवल कानून बनाने से कुछ नही होगा उस के द्वारा तो हम लोगो में डर पैदा कर सकते है और कमी भी ला सकते परन्तु कानून को सदेव सबूतों की जरुरत होती है जो इस प्रकार की गतिविधियों में छुपा लिए जाते है और सरकर कुछ नही कर पातीइस की रोकथम के लिए जरुरी है लोगो का जागरूक करना जैसे नुक्कड़ नाटक तथा गीतों का सहारा लेकर ,सम्मेंलनो के जरिये माँ -बेटी को विवाह के दुष्परिणाम के सम्बन्ध में अवगत कराकर तथा अधिक से अधिक लोगो को इस प्रथा को रोकने के लिए भागीदार banaker इसका सबसे अहम् कारण garibi bhi hai jo choti umer aur bemale vivha karati hai iske liye bhi sarkar ladli yojnayo jaisi yojnaye layi jis ka labh logo ko hua bhi parantu kagji kryewahi se bachne wale logo phir peeche rahe gaye इसके लिए कुछ समाजसेवी संगठनों को गरीब कन्याओ के विवाह के लिए कुछ धन राशिः मुहेयिया करानी chaiye tatha ladli yojnayo jaisi yojnayo ko kiriyanvit karne mein saheyog dena chaiye aur jaha is prakar ke vivaha adhik hote hai वहा पर लड़कियों की संख्या ,शिक्षा ,उमरअदि का बेयोरा रखे और समय -समय पर जाच करे की कही इस प्रकार किसी की जिंदगी के अनमोल पल ख़राब न हो रहे हो