मंगलवार, 11 जनवरी 2011

jewan ka pahela dwar 'shiksha ka adhikaar'

हर मॉं - बाप का सपना होता है कि वह अपने बच्‍चे को एक सुरक्षित, शिक्षित व सुनहरा भविष्‍य दें और इस सपने की शुरूआत भी बच्‍चे के जन्‍म के साथ ही हो जाती है। हर मॉं-बाप अपने बच्‍चे को अच्‍छी से अच्‍छी शिक्षा देना चाहते हैं। लेकिन, आज के दौर में माँ-बाप की असली परीक्षा बच्‍चे के जीवन के प्रथम द्वार शिक्षा, के लिए प्रारम्भिक चरण यानि दाखिले के समय से ही शुरू हो जाती है। माता-पिता विद्यालयों में अपने बच्‍चों के नर्सरी, के.जी. के द‍ाखिले के लिए जाते हैं। ताकि उनका बच्‍चे पढ़ लिखकर एक बेहतर भविष्‍य बना सकें। उसकी पढ़ाई की नीव मज़बूत बन सके। सबसे पहले ही उनके दाखिले को लेकर इतनी समस्‍याएं माता पिता के सामने आ खड़ी होती हैं कि शिक्षा के मंदिर भी व्‍यवसाय का केन्‍द्र नज़र आने लगते हैं। नर्सरी में बच्‍चे तब एडमिशन प्राप्‍त कर शिक्षा ग्रहण कर पाएंगे जब पहले माता-पिता उनके दाखिले के लिए पद्धति का एन्‍ट्रेंस टेस्‍ट पास कर पाएंगे अर्थात् अब नर्सरी के प्रवेश के लिए पहले माता पिता को पढ़ना होगा।
नए साल की शुरूआत के साथ ही शिक्षा निदेशालय के आदेशानुसार स्‍कूलों में रजिस्‍ट्रेशन के लिए 1 से 15 जनवरी तक का समय दिया गया और अधिकतर स्‍कूल इसी समय सीमा के मुताबिक ही एडमिशन प्रोसेस कंडक्‍ट कर रहे हैं, जिसमें ऑन लाइन रजिस्‍ट्रेशन भी उपलब्‍ध है। साल के पहले ही दिन से माता पिता अपने बच्‍चे के नर्सरी में दाखिले के लिए इस दौर में दौड़ते नज़र आ रहे हैं। इस दाखिले की दौड़ में माता पिता की दौंड लगवाने वाले कुछ नामी ग्रामी स्‍कूलों की लिस्‍ट में सबसे ऊपर एयर फोर्स बाल भारती स्‍कूल, माउंट आबू पब्लिक स्‍कूल, स्प्रिंगडल्‍स स्‍कूल, दिल्‍ली पब्लिक स्‍कूल, ज्ञान भारती स्‍कूल आदि शामिल हैं। इन सभी स्‍कूलों में रजिस्‍ट्रेशन प्रोसेस के फार्म को भरना बहुत जटिल है। जिन्‍हें समढने में ही माता पिता को काफी मुश्‍ि‍कलों का सामना करना पड़ रहा है। स्‍कूलों ने इस प्रोसेस में कुछ पाव्‍इंट्स भी शामिल किए है जिनमें कुछ बिन्‍दू हैं, बच्‍चे की उम्र, आस पड़ोस, फसर्ट चाइल्‍ड, गर्ल चाइल्‍ड, चाइल्‍ड विद स्‍पेशल नीड़, सिंग्‍ल पैरेंट्स, फिजिकली चैलेंजेंड चाइल्‍ड आदि स्‍पेशल है। इन्‍हें अच्‍छे व अधिक अंक दिए जाते हैं। इन फार्मों के अंदर इतनी अधिक चीजें पूछी गई हैं कि माता पिता को फार्म भरने में ही काफी मशक्‍त करनी पड़ रहीं हैं। पहले फार्म पाने के लिए 2 से 3 घंटे लाइनों में लगना, उसके बाद उसे भरने की प्रक्रिया पूरी कर उसे जमा कराना। इस प्रक्रिया को करने में प्रत्‍येक माता पिता को 8 से 10 बार करनी पड़ रही है क्‍योंकि हर माता पिता अपने बच्‍चे के लिए कम से कम 8 से 10 स्‍कूलों में रजिस्‍ट्रेशन करावा रहे हैं। जहां सरकार ने माता पिता की सुविधा के लिए फार्म की कीमत केवल 25 रुपए तय की हुई हैं वहीं स्‍कूल इस फार्म के साथ प्रोस्‍पेक्‍टस खरीदने के लिए भी माता पिता को बाध्‍य कर रहे हैं, जिसकी कीमत 100 से 500 रुपए के बीच है। उनका कहना है कि फार्म तभी मिलेंगे जब प्रोस्‍पेक्‍ट्स खरीदेगें क्‍योंकि फार्म भरने की पूरी प्रक्रिया इस फार्म के अंदर ही है। प्रोस्‍पेक्‍ट्स नहीं तो द‍ाखिला नहीं और दाखिला तभी होगा जब फार्म ठीक ठीक वैसा ही भरा होगा, जैसा कि प्रोस्‍पेक्‍ट्स में लिखा है। इस लिए सबसे पहले फार्म भरना ही माता पिता के लिए एक सिरदर्द बना हुआ है।
अभी तक हमने एक बच्‍चे के दाखिले को लेकर स्‍कूलों की मनमानी और माता-पिता की समस्‍या के बारे में बात की । यदि गौर किया जाए तो इन सब के लिए जि़म्‍मेदार कौन है, सरकार इन स्‍कूलों की मनमानी के लिए कोई कदम क्‍यों नहीं उठा पहीं हैं। माता पिता सुबह 5 बजे से लाइनों में लगे क्‍यों इतनी मारामारी सह रहे हैं। अब विचार करने योग्‍य बात यह है कि इन स्‍कूलों की इतनी मनमानी दिन पर दिन क्‍यों बढ़ती जा रही है। रूकूलों की दिन पर दिन बढ़ती मनमानी के पीछे सबसे बड़ा कारण है इन स्‍कूलों के प्रति माता-पिता का बढ़ता क्रेज़। जिन लोंगों ने इन विद्यातयों को इस स्‍तर तक पहुँचाया है उन्‍हीं विद्यालयों की मनमानी आज न चाहते हुए भी हर माता पिता को अपने बच्‍चों के दाखिले के लिए सहनी पड़ रही है और सरकार इस मुद्दे पर चुप्‍पी सादे नज़र आ रही है।
इन विद्यालयों की बढ़ती मनमानी और इसके बाबजूद भी इन्हीं स्‍कूलों में अपने बच्‍चों के दाखिले के लिए माता-पिता का बढ़ता क्रेज क्‍या सरकारी स्‍कूलों और कम फीस वाले स्‍कूलों की शिक्षा प्रणाली/ स्‍तर पर सवालियां निशान खड़ा नहीं करते। क्‍या जो सरकार इन स्‍कूलों को मान्‍यता प्रदान करती है वहीं सरकार अपने स्‍कूलों के शिक्षा तंत्र को इतना मज़बूत नहीं समढती कि लोगों को अपने बच्‍चचे को सरकारी स्‍कूलों में पढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकें ? जबकि सरकारी स्‍कूलों में एक एक शिक्षक का चयन इतनी योग्‍यताओं, अनुभवों व जटिल चयन प्रक्रिया से गुजरने के बाद किया जाता है। नर्सरी कक्षा के लिए भी शिक्षक की योग्‍यता ‍कम से कम बी.एड. पास है क्‍योंकि इससे कम योग्‍यता वाले शिक्षक तो स्‍कूलों में पढ़ा भी नहीं पाते हैं। फिर क्‍यों हर माता-पिता अपने बच्‍चों के दाखिले के समय पब्लिक स्‍कूलों का मुँह देखते हैं, उनकी मनमानी सहते हैं और समझते हैं कि पब्लिक स्‍कूलों में शिक्षा बेहतर होती है इसलिए उनका रिजल्‍ट भी बेहतर होता है। यदि देखा जाए तो सरकारी स्‍कूलों का रिजल्‍ट पब्लिक स्‍कूलों से कम नहीं होता है। आज जो भी माता‍-पिता सार्मथवान है वह अपने बच्‍चों को पब्लिक स्‍कूलों में ही पढ़ाना चाहते हैं यह सब केवल ऊँची ऊँची बिल्डिंगों का ही प्रभाव है, या शिक्षा में भी अंतर होता है या पिफर यह सब माता-पिता के स्‍टेटस सिम्‍बल को भभ्‍ प्रदर्शित करता है अ‍ाखिर यह सब क्‍या है। इन सबके बीच सदैब मध्‍यम वर्ग के आदमी को क्‍यों पिसना पड़ता है। वह इन नामी स्‍कूलों में अपने बच्‍चे चाह कर भी नहीं पढ़ा सकता क्‍योंकि उसकी महीने की आमदनी से भी अधिक उसके बच्‍चे के स्‍कूल की महीने की फीस ही होती है। यदि माता पिता अपना बच्‍चा उन स्‍कूलों में पढ़ता है जो स्‍कूल नामी ग्रामी स्‍कूल से कम स्‍तर पर होते है और उनकी फीस भी सामान्‍य लगती है तो भी माता पिता को इन स्‍कूलों की फीस की मार सहनी पड़ती है क्‍योंकि यह स्‍कूल भी उन बड़े बड़े स्‍कूलों की तरह अपनी फीस अधिक करके मनमानी करते हैं। इन सब समस्‍यों को देखते हुए क्‍यों मुठ्ठी भर लोगा ही अपने बच्‍चों को सरकारी स्‍कूलों में पढ़ाना चाहते हैं।
अखिरकार क्‍या शिक्षा अब केवल शिक्षा न रहकर व्‍यवसाय और दिखावें की दुनिया तक सीमित रह जाएगी। आगे शिक्षा का भविष्‍य क्‍या होगा यह चिन्‍तनीय विषय है।
- मनु शर्मा