रविवार, 6 मार्च 2011

महंगाई के ढोल की पोल

देश में जब भी कुछ नया होता है तो राजनीतिक गलियारों से लेकर पान वाले ki दुकान तक देश का कोई भी कोना उससे अछूता नहीं रहता है और आज कल तो चारो ओर मंहगाई का शोर ही सुनाई पड़ता है| लेकिन फिर सोचा कि आखिर मंहगाई है क्या ? तो पाया कि यह एक ऐसी समस्या है जिसके अंतर्गत एक आम नागरिक की आम वस्तुए कुछ खास होती चली जाती हैं ओर कई बार तो वो वस्तुए अपनी खासियत की सीमा को इस हद तक पार कर जाती हैं कि खास नागरिको से भी दूर होने लगती हैं |तब लोगों की नींद से भरी आंखे खुलती हैं और उन्हें होश आता है कि देश में मंहगाई बढ रही हैं और इन खास चीजों में मुख्यत: खाधय प्रदार्थ ,दैनिक उपभोग की वस्तुए ,दवाईयां ,आवागमन साधन ,जल ,विधुत का बढता किराया आदि शामिल हैं| लेकिन अक्सर यह देखा जाता है की हम सभी इसका सारा दोष सरकार को देते हैं जो कही की भी इंसानियत नहीं है इसमें कही न कही हम सब भी जिम्मेदार होते हैं| आधे से ज्यादा समस्या तो देश में बढती जनसँख्या के कारण उत्पन्न होती है अब क्या उसके लिए भी सरकार जिम्मेंदार है नहीं| बढती जनसंख्या ,खाद्य प्रदार्थो के उत्पादनं में कमी,बढते ओद्योगीकरण के फलस्वरूप कृषि योग्य भूमि में होती कमी,किसानो का शहरो की और पलायन ,शहरीकरण की दोड़,लोगों का भोतिक साधनों की और बढता रुझान तथा उसकी तुलना में लगातार घटते साधन भी मंहगाई का कारण होते हैं|लगातार बढती महंगाई के लिए जितने आप और हम दोषी है उससे कही ज्यादा सरकार दोषी हैं| कॉमन वेल्थ गेम्स २०१० की आड़ में सरकार राज़ में बहुत महंगाई बढ गयी यदि आपके और हमारे घरो में कोई मेहमान आता है तो घर की सजावट तो सभी करते है पर मेहमानों की खातिर आखिर कोन अपना घर तोड़ कर नए सिरे से बनता है |लेकिन देश में यही हो रहा है, हो भी क्यों न इसकी आड़ में मुनाफाखोरी भी तो हो रही हैं| हमारी सरकार नये -नये मुद्दों की आड़ लेकर महंगाई को बढवा दिया जाता है कभी बाढ़ के नाम पर तो कभी आर्थिक विकास के नाम | यहाँ तक की अपने देश में क्या हो रहा है उसकी खबर भी राजनेताओ को विदेश दोरों से पता चलता है| लेकिन कारणों की कोई सीमा नहीं होती हैं| यदि इस बढती महंगाई को रोकना है तो सरकार को चोरबाजारी ,मुनाफाखोरी पर कड़ा नियंत्रण करना ,उत्पादन बढ़ाना ,निर्यात वृदि करना आदि बहुत से उपाय करने चाहिए और हम सबको भी मिलकर अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को भूल कर राष्ट्र स्वार्थ को महत्व देना चाहिए|और अंत में कुछ पंक्ति कहना चाहूगी-
राजनीती के गलियारों में शोर बहुत है ,पर जनता मोंन है ,
कि सरकार पलट भी जायगी तो क्या रंग लाएगी |
अभी यह पार्टी निचोड़ रही थी,
अब दूसरी पार्टी दबा दबा कर खाएगी |
और जनता बेचारी वही रह जायगी
महंगाई का बिगुल बजाएगी ||

1 टिप्पणी:

  1. महंगाई पर सार्थक चिंतन. चुटीले अंदाज की कविता में भी सच्चाई झलक रही है.

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